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उपभोक्ता अदालते और वाणिज्यिक प्रयोजन –फिर एक और विवाद

उपभोक्ता अदालते और वाणिज्यिक प्रयोजन –फिर एक और विवाद

उल्लेखनीय है की उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में वाणिज्यिक प्रयोजन की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं दी गयी है जिसके कारण हेर नए केस में अलग निर्णय हो जाता है और फिर यह शब्द बार बार व्याख्या की मांग करता है . इस शब्द को जोड़ने का कारण बड़े उद्योगपतियों को उपभोक्ता बनाने से रोकना था और इस कनून की सुविधा  साधनहीन उपभोक्ताओ तक सीमित करना था . फिर एक प्रश्न ऐसा भी उठा जब एक बड़ी कंपनी ने बीमा कंपनी के विरुद्ध बीमा का मुआवजा देने से मना केर दिया . यहाँ प्रश्न यह थे की कंपनी बीमा का व्यापर नहीं करती थी न ही बीमा करने से उसे व्यापर में लाभ होता था . यह तो केवल नुक्सान की भेर्पयी के लिए सावधानी के रूप में कराया गया था . इस बात की विषद व्याख्या हुई और नेशनल कमीशन ने अपने हेर्सोलिया मोटर्स बनाम नेशनल इन्सुरांस कंपनी के केस में अपने 3.12.04 के आदेश में यह स्पष्ट किया की बीमा के मामले में बड़ी कंपनी भी उपभोक्ता अदालत जा सकती है .  

इस निर्णय तक पहुँचने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के लक्ष्मी इन्जीनीरिंग वर्क्स लिमिटेड के १९९५  में दिए गए निर्णय की बातो को ध्यान में रखा गया और उदाहरण दे केर बात को स्पष्ट किया गया था .जैसे-

·         यदि टाइपराइटर स्व रोजगार हेतु अपने प्रयोग के लिए खरीदा है या कार स्व रोजगार हेतु खुद चलने के लिए खरीदी है तो वाणिज्यिक प्रयोजन नहीं होगा .

·         यदि किसी कंपनी ने टाइपराइटर कराम्चारियो के लिए खरीदी हो या टैक्सी कंपनी ने ड्राईवर के साथ किराये पर देने के लिए खरीदी है तो यह वाणिज्यिक प्रयोजन होगा

 अब प्रश्न कंपनी के डायरेक्टर द्वारा प्रयोग में लाये जाने वाली कार का आया . कार में दोष पाए जाने पर या कार का एक्सीडेंट होने पर विक्रेता कंपनी या इन्सुरेंस कंपनी के विरुद्ध कंपनी उपभोक्ता अदालत जा सकती है या नहीं . नेशनल कमीशन की दो जजों की दो बेंचो ने अलाल्ग अलग निर्णय दे दिए .

कंट्रोल्स एंड स्विचगीर कंपनी लिमिटेड बनाम देमार क्रिस्लेर इंडिया लिमिटेड IV (2007) सी पी जे (एन सी) के मामले में नेशनल कमीशन ने यह माना की डायरेक्टर कार का प्रयोग करता है अपने लिए ,इससे व्यापर नहीं होता . इस लिए इसे वाणिज्यिक प्रयोजन नहीं कह सकते

जबकि जनरल मोटर्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम गी एस फ़र्टिलाइज़र प्राइवेट लिमिटेड अपील नो. 723 of 2006,निर्णीत  07.02.2013 के मामले में अलग निर्णय किया गया की डायरेक्टर कार का प्रयोग स्व रोज़गार के लिए नहीं करता ,कंपनी उसे  व्यापर के लिए ही प्रोत्सहन रूप में देती है इसलिए प्रयोजन व्यापर होगा .

इन दोनों विपरीत आदेशो के कारन एक नए केस कंसुमेर केस संख्या ५१ / २००६ क्रोम्तों ग्रीव्स लिमिटेड बनाम देम्लेर क्रिस्लेर इंडिया प्राइवेट लिमिटेड  में नेशनल कमीशन की तीन सदस्यों की खंडपीठ ने इस विवाद को अपने विस्तृत आदेश के माध्यम से सुलझाने का प्रयास किया है जो इस प्रकार है -

 

·         वस्तुए या सेवांए जो कंपनी के डायरेक्टर को केवल अपने व्यक्तिगत प्रयोग के लिए दी जाती है और उसे उनका परिवार भी प्रयोग करता है तो वे कंपनी की तरफ से दी  जाने वाली सुविधा या भत्ते होंगे ,कम्पनी के लिए नहीं .इसलिए वाणिज्यिक प्रयोजन नहीं होगा .

·         वस्तुए या सेवांए जो कंपनी के डायरेक्टर को केवल अपने व्यक्तिगत प्रयोग के लिए दी जाती है किन्तु कभी उसे ऑफिस जाने या ऑफिस के काम से मीटिंग में जाने के लिए भी प्रयोग होती है तो वेह भी वाणिज्यिक प्रयोजन नहीं माना जायेगा

·         वस्तुए या सेवांए जो कंपनी के डायरेक्टर को केवल ऑफिस के या ऑफिस के स्टाफ के काम के लिए दी जाती है उसे वाणिज्यिक प्रयोजन ही माना जायेगा .

डॉ प्रेम लता

 

 

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